Tag: Dushyant Kumar

Dushyant Kumar

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से, क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है। इस...
Dushyant Kumar

क़ैद परिंदे का बयान

तुमको अचरज है—मैं जीवित हूँ! उनको अचरज है—मैं जीवित हूँ! मुझको अचरज है—मैं जीवित हूँ! लेकिन मैं इसीलिए जीवित नहीं हूँ— मुझे मृत्यु से दुराव था, यह जीवन जीने...
Dushyant Kumar

संकट और साहित्य

सुनते थे कि साहित्यकार की व्यापक दृष्टि आधारभूत मानवीय मूल्यों पर रहती है और उन्हें समग्र विश्व के परिप्रेक्ष्य में देखती-परखती है। वह तात्कालिकता...
Dushyant Kumar

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं। अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं। वो सलीबों...
Dushyant Kumar

ईश्वर को सूली

मैंने चाहा था कि चुप रहूँ, देखता जाऊँ जो कुछ मेरे इर्द-गिर्द हो रहा है। मेरी देह में कस रहा है जो साँप उसे सहलाते हुए, झेल लूँ थोड़ा-सा संकट जो...
Dushyant Kumar

वो आदमी नहीं है, मुकम्मल बयान है

वो आदमी नहीं है, मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगु, मैं क्या बताऊँ, मेरा...
Dushyant Kumar

कौन-सा पथ

तुम्हारे आभार की लिपि में प्रकाशित हर डगर के प्रश्न हैं मेरे लिए पठनीय कौन-सा पथ कठिन है...? मुझको बताओ मैं चलूँगा। कौन-सा सुनसान तुमको कोंचता है कहो, बढ़कर उसे...
Dushyant Kumar

प्रेरणा के नाम

तुम्हें याद होगा प्रिय जब तुमने आँख का इशारा किया था तब मैंने हवाओं की बागडोर मोड़ी थीं, ख़ाक में मिलाया था पहाड़ों को, शीश पर बनाया था एक...
Dushyant Kumar

काग़ज़ की डोंगियाँ

यह समंदर है। यहाँ जल है बहुत गहरा। यहाँ हर एक का दम फूल आता है। यहाँ पर तैरने की चेष्टा भी व्यर्थ लगती है। हम जो स्वयं...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)