Tag: Earth
पृथ्वी सोच रही है
ये जो चारों तरफ़ की हवा है
भर गई है उन पैरों की धूल से
जो इस पृथ्वी पर सबसे अकेले हो गए हैं
वे असंख्य लोग हैं
जो...
संक्रमण-काल
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आज
हर देश का शव नितान्त अकेला है
हर देश का जीवित-भय एक है
एक है धरती
एक है आकाश
एक है पानी का रंग
एक ही स्वाद है आँसू का
एक है...
पृथ्वी एक चिट्ठी
खुली आँखों से देखे हुए सपने
मुझे रात में काटते हैं चिकोटियाँ
और गड़ाते हैं दाँत,
वे नहीं चाहते कि मैं उन्हें भूलूँ
मुझे नहीं पता मैं कब सोयी...
पृथ्वी की नाक और चिट्ठी
'Prithvi Ki Naak Aur Chitthi', a poem by Pratibha Gupta
बिस्तर के कोने पर
चुपचाप पड़ी देह
गर्म हो चली थी,
किन्तु आत्मा अब भी ठण्डी थी।
कानों में फुसफुसाता...
पृथ्वी पर प्रेम के चुनिंदा दावेदार हैं
'Prithvi Par Prem Ke Chuninda Davedar Hain', a poem by Prabhat Milind
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मनुष्य को घृणा नहीं, प्रेम मारता है
घृणा करते हुए हम चौकन्ने रहते हैं
लोग...