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Parveen Shakir

चाँद-रात

गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था चाँद को देखके उसका चेहरा देखा था फ़ज़ा में 'कीट्स' के लहजे की नरमाहट थी मौसम अपने रंग...

तुम मुबारक

"लगे इलज़ाम लाखो हैं कि घर से दूर निकला हूँ तुम्हारी ईद तुम समझो, मैं तो बदस्तूर निकला हूँ।" "तुम नहीं सुधरोगे ना? कोई घर ना...
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