Tag: Forest and Man

Trilochan

दीवारें दीवारें दीवारें दीवारें

दीवारें दीवारें दीवारें दीवारें चारों ओर खड़ी हैं। तुम चुपचाप खड़े हो हाथ धरे छाती पर; मानो वहीं गड़े हो। मुक्ति चाहते हो तो आओ धक्‍के मारें और ढहा...
Kashinath Singh

जंगलजातकम्

"हे भद्र, हमारे पूर्वजों और मनुष्यों का बड़ा ही अंतरंग संबंध रहा है। उनके लिए हम अपने पुष्प, अपने बीच छिपी सारी संपदा, कंद-मूल, फल, पशु-पक्षी सब कुछ निछावर कर चुके हैं और आज भी करने के लिए प्रस्तुत हैं। विश्वास करें, शुरू से ही कुछ ऐसा नाता रहा है कि हमें भी उनके बिना खास अच्छा नहीं लगता। जवाब में उन्होंने भी हमें भरपूर प्यार दिया है। लेकिन आप? ...हमें संदेह है कि आप मनुष्य हैं!"
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