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काले भेड़िए के ख़िलाफ़
देखो
कि जंगल आज भी उतना ही ख़ूबसूरत है। अपने
आशावान हरेपन के साथ
बरसात में झूमता हुआ। उस
काले भेड़िए के बावजूद
जो
शिकार की टोह में
झाड़ियों से निकलकर...
जंगल की कविता
मैंने तो पहले ही कहा था
जंगल में नहीं जाना
जंगल तुम झेल नहीं पाओगे
तुम नामवालों की दुनिया में उपजे हो
जंगल में सब कुछ निर्नाम है
पत्र...
तत्सत्
एक गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें...
कौन बचता है
जहाँ
इस वक़्त
कवि है
कविता है,
वहाँ
जंगल है और अँधेरा है और हैं
धोखेबाज़ दिशाएँ।
दुश्मन सेनाओं से बचने की कोशिश में
भटकते-भटकते
वे यहाँ आ फँसे हैं, जहाँ से
इस वक़्त
न...
खोया हुआ जंगल
खिड़की के बाहर जंगल था
खिड़की पर चिड़िया बैठी थी
मैंने यह पूछा चिड़िया से—
"चिड़िया-चिड़िया, कितना जंगल?"
चिड़िया ने तब आँख नचायी
चिड़िया ने तब पंख फुलाए
मेरी तरफ़...
पलाश के फूल
'Palash Ke Phool', a poem by Prita Arvind
जंगल में पलाश के पेड़ पर
फूल लग गए हैं, यह किसी को
बताना नहीं पड़ता क्यूंकि
पलाश के फूल...