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सिद्धार्थ बाजपेयी की कविताएँ
सुना तुम मर गए, गई रात
कोई सुबह है
किसी भी सुबह की तरह
वासंती सन्नाटा
गहरा है
और अचानक कोयल बोली
प्राणों को बेधती हुई
कलेजे में उठी हूक की...
मैं तुम्हें भूलने के पथ पर हूँ
मैं तुम्हें भूलने के पथ पर हूँ
मुझे परवाह नहीं यदि भूल जाऊँ
अपनी लिखी सारी पंक्तियाँ
मैं लगातार चलती जा रही हूँ
मेरे पीछे उठा मानसून भी...