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Ahmad Nadeem Qasmi

एक दरख़्वास्त

ज़िन्दगी के जितने दरवाज़े हैं, मुझ पे बंद हैं देखना— हद्द-ए-नज़र से आगे बढ़कर देखना भी जुर्म है सोचना— अपने अक़ीदों और यक़ीनों से निकलकर सोचना...
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