Tag: Gaurav Bharti
कविताएँ: अगस्त 2022
विस्मृति से पहले
मेरी हथेली को कैनवास समझ
जब बनाती हो तुम उस पर चिड़िया
मुझे लगता है
तुमने ख़ुद को उकेरा है
अपने अनभ्यस्त हाथों से।
चारदीवारी और एक...
कविताएँ: दिसम्बर 2021
एक यूँ ही मौत
जिन दिनों
मैं उलझ रहा था अपनी नींद से
जिन दिनों
मैं तोते की तरह रट रहा था ऐतिहासिक तथ्य
जिन दिनों
रातें बड़ी मुश्किल से...
कविताएँ: नवम्बर 2021
यात्री
भ्रम कितना ख़ूबसूरत हो सकता है?
इसका एक ही जवाब है मेरे पास
कि तुम्हारे होने के भ्रम ने
मुझे ज़िन्दा रखा
तुम्हारे होने के भ्रम में
मैंने शहर...
कविताएँ: सितम्बर 2021
हादसा
मेरे साथ
प्रेम कम
उसकी स्मृतियाँ ज़्यादा रहीं
प्रेम
जिसका अन्त
मुझ पर एक हादसे की तरह बीता
मुझे उस हादसे पर भी प्रेम आता है।
गंध
मैं तुम्हें याद करता हूँ
दुनिया...
बिखरा-बिखरा, टूटा-टूटा : कुछ टुकड़े डायरी के (चार)
आदमी, शरीर से ही नहीं थकता, मन से भी थकता है। मन से थका हुआ आदमी सहानुभूति का विषय है, शरीर से थका हुआ...
कम्पाउण्डर
लोग जहाँ
खेतों में खप जाते हैं
शहर से चली हुई बिजली
जिनके यहाँ तक आते-आते बीच में ही कहीं किसी खम्भे पर दम तोड़ देती है
ज़रूरत...
आवेदन पत्र
भाषा के शिक्षक ने
पारम्परिक कौशल के साथ
कार्य-कारण सम्बन्धों को साधना सिखाया
कुछ शब्द
जो हर फ़्रेम में फ़िट बैठते
उन्हें रटने की बात कही
इस विश्वास के साथ...
बिखरा-बिखरा, टूटा-टूटा : कुछ टुकड़े डायरी के (तीन)
कल रात मैंने चश्मे के टूटे हुए काँच को जोड़ते हुए महसूस किया कि टूटे हुए को जोड़ना बहुत धैर्य का काम है। इसके...
बिखरा-बिखरा, टूटा-टूटा : कुछ टुकड़े डायरी के (दो)
सम्वाद महज़ शब्दों से तो नहीं होता। जब शब्द चूक जाते हैं, तब स्पर्श की अर्थवत्ता समझ आती है। ग़ालिब कहते हैं— "मौत का...
बिखरा-बिखरा, टूटा-टूटा : कुछ टुकड़े डायरी के (एक)
बहुत बुरा वक़्त है। ऐसा लगा था सब ठीक होने वाला है। लेकिन बुरा वक़्त इतनी जल्दी पीछा कहाँ छोड़ता है? श्मशान लाशों से...
हम मारे गए
हमें डूबना ही था
और हम डूब गए
हमें मरना ही था
और हम मारे गए
हम लड़ रहे थे
कई स्तरों पर लड़ रहे थे
हमने निर्वासन का दंश...
दुःख
सपनों के डर से
मैंने कई रातें दिन की तरह बितायीं
और दिन में बेहोश होकर सोया
बहुत बाद में
मुझे मालूम हुआ
नींद और बेहोशी में फ़र्क़ होता...