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पर्दे के पीछे
"अल्लाह गवाह है जिस रोज यह इधर-उधर चले जाते हैं तो मैं चैन की नींद सोती हूँ। रोज यही है कि तुम रोज-रोज की बीमार हो, मैं कब तक सबर करूँ? मैं दूसरा ब्याह करता हूँ।
मैंने तो कहा, बिस्मिल्लाह करो। अब साल भर बाद साबरा की विदाई है। बाबा-बेटियों का साथ-साथ हो जाय। एक गोद में नवासा खिलाना, दूसरी में नई बीवी का बच्चा। बस लड़ने लगते हैं कि औरतें क्या जानें, खुदा ने उनको एहसास ही नहीं दिया। मैं तो कहती हूँ कि तुममें सारे मर्दों का एहसास भरा है।"