Tag: Ghananand Kavitt
चँद चकोर की चाह करैं
"चन्द्रमा चकोर से प्रेम करता है, प्रेम करने के लिए ही आकाश में नित्य आता है!"
चातिक चुहल चहुँ ओर
"मैं तुमको चाहता हूँ, अतः तुम भी मुझे प्रतिदान में चाहो, ऐसी इच्छा रखना परले सिरे की मूर्खता होगी।
क्या चन्द्रमा को चकोरों की कमी है? उत्तर है, नहीं। अर्थात् प्रिय के प्रेमी बहुत हो सकते हैं पर प्रेमियों के लिए प्रिय एक ही होता है..."
हीन भएँ जल मीन अधीन
"मछली अपने प्रेमी जल के वियोग के कारण प्राण त्याग देती है और प्रतिदान में जल कुछ नहीं करता।"
अति सूधो सनेह को मारग है
अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।।
घन आनँद प्यारे सुजान सुनौ...