Tag: Gopalsharan Singh

Gopalsharan Singh

मुझे अकेला ही रहने दो

रहने दो मुझको निर्जन में काँटों को चुभने दो तन में मैं न चाहता सुख जीवन में करो न चिंता मेरी मन में घोर यातना ही सहने दो मुझे...
Gopalsharan Singh

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार? सुन कर प्राणों के प्रेम-गीत, निज कंपित अधरों से सभीत। मैंने पूछा था एक बार, है कितना मुझसे तुम्हें प्यार? मैं हूँ अपराधी किस...
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