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अमरूद का पेड़
घर के सामने अपने आप ही उगते और फिर बढ़ते हुए एक अमरूद के पेड़ को मैं काफ़ी दिनों से देखता हूँ। केवल देखता...
घंटा
"इन दिनों कुंदन सरकार का घंटा मैं था। वह मुझसे जरा भी नहीं बिदका। मेरी चट्टी काफी गंदी थी। अपना औघड़ रूप लेकर उसके घर में घुसते हुए मुझे लगा, यह कतई उचित और आरामदेह जगह नहीं हो सकती लेकिन लालच का कहीं कोई जवाब नहीं है। शराब जीवन-ज्योति हो गई थी। किसी से शराब क्या पी ली, समझा बहुत ठगी कर ली। यह हालत थी।"
प्रेमचंद और उनके समकालीन साहित्यकारों की कहानियों में जहाँ सामाजिक जीवन की समस्याएं और उनके समाधान देखने को मिलते थे, वहीं स्वतंत्रता के बाद कहानीकारों की एक ऐसी धारा सामने आयी जिसने मध्यवर्गीय समाज में जीने वाले इंसानों की आंतरिक और बाहरी विसंगतियों को बिना किसी आवरण के पाठकों के सामने रखा। ज्ञानरंजन की यह कहानी 'घंटा' भी एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें भारतीय समाज में पूंजीवाद और मध्यवर्ग के जन्म से आए बदलावों और विसंगतियों का एक चेहरा प्रस्तुत किया गया है! इस सामाजिक-राजनैतिक बदलाव ने व्यक्ति की संवेदना और व्यवहार पर क्या प्रभाव डाला, यह साफ़ देखने को मिलता है...