Tag: Hari Ghas Par Chan Bhar

Agyeya

हरी घास पर क्षण भर

'Hari Ghas Par Kshan Bhar', a poem by Agyeya आओ बैठें इसी ढाल की हरी घास पर। माली-चौकीदारों का यह समय नहीं है, और घास तो अधुनातन मानव-मन...
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