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हरिराम मीणा की क्षणिकाएँ – II
1
ठर्रा के पलीता ने
आग लगा दी ग़ुस्से की भट्टी में
मज़दूर ने पहली बार ज़ुबान खोली
'पल-पल का हिसाब लूँगा हरामियों से।'
2
लोकतंत्र में एक जम्बूरा ठोकतंत्र...
हरिराम मीणा की क्षणिकाएँ
'आदिवासी जलियाँवाला एवं अन्य कविताएँ' से
1
जो ज़मीन से
नहीं जुड़े,
वे ही
ज़मीनों को
ले
उड़े!
2
यह कैसा अद्यतन संस्करण काल का
जिसके पाटे पर क्षत-विक्षत इतिहास
चिता पर जलते आदर्श
जिनके लिए...
बिरसा मुंडा की याद में
'लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ' से
अभी-अभी
सुन्न हुई उसकी देह से
बिजली की लपलपाती कौंध निकली
जेल की दीवार लाँघती
तीर की तरह जंगलों में पहुँची
एक-एक दरख़्त, बेल, झुरमुट
पहाड़, नदी,...