Tag: Harivanshrai Bachchan
आत्म-परिचय
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार...
कवि के मुख से : मधुशाला
ऑल इण्डिया रेडियो, लखनऊ, से प्रसारित, 1941
मेरी सबसे पहली रचना 'तेरा हार' 1932 में प्रकाशित हुई थी। उसकी प्रशंसा मैंने पत्रों में पढ़ी थी...
ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब
गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया है
झुक गया है
तेरा मुँह चुचुक गया है
तू चुक गया है।
ऐसा तुझे देखकर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावाना होकर...
गरमी में प्रातःकाल
मिलन यामिनी से
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन से लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर...
प्रश्न मेरे, उत्तर बच्चन के
साक्षात्कार: हरिवंशराय बच्चन (बच्चन रचनावली खंड 9 से)
साक्षात्कारकर्ता: कुमारी विभा सक्सेना, 1979
प्रश्न— आपने अपनी आत्मकथा के प्रथम भाग 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' में...
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुःख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति...
मुझसे चाँद कहा करता है
मुझसे चाँद कहा करता है।
चोट कड़ी है काल प्रबल की,
उसकी मुस्कानों से हल्की,
राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है।
मुझसे चाँद कहा...
मैं कल रात नहीं रोया था
मैं कल रात नहीं रोया था।
दुःख सब जीवन के विस्मृत कर,
तेरे वक्षस्थल पर सिर धर,
तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था,
मैं कल...
क्यों पैदा किया था?
ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश से घबराकर
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि
हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है कि
मेरे बाप...
मेरे जीवन का सबसे बड़ा काम
"तेज, मैंने रात को यह स्वप्न देखा है
कि जैसे मर गया हूँ।"
मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने बच्चन से पूछा कि उन्होंने जीवन में सबसे बड़ा काम क्या किया था, तो बच्चन के मन में आया कि कह दूँ 'मधुशाला' लिखी है, लेकिन फिर कुछ और जवाब दे दिया.. और इस जवाब में ही इस कविता का सार भी छिपा है.. ज़रूर पढ़िए! :)
हरिवंशराय बच्चन की पहली और अन्तिम कविता
यह जानना एक आम जिज्ञासा है कि एक कविता लिखते समय किसी कवि के मन में क्या चल रहा होता है! इसके बावजूद कि...
हरिवंशराय बच्चन: जन्मदिन पर विशेष
नोट: यह लेख मूल रूप से हिन्दी अखबार अमर उजाला के ऑनलाइन पोर्टल 'काव्य' के लिए लिखा गया था। यहाँ पुनः प्रस्तुत है।
हरिवंशराय बच्चन...