Tag: Hasya Kavita
चाय-चक्रम्
एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।
दूध, दही, फल, अन्न, जल छोड़ पीजिए चाय॥
छोड़ पीजिए चाय, अमृत बीसवीं सदी का।
जग-प्रसिद्ध जैसे गंगाजल गंग...
बीती विभावरी जाग री (पैरोडी)
"तू लम्बी ताने सोती है
बिटिया 'माँ-माँ' कह रोती है
रो-रोकर गिरा दिए उसने
आँसू अब तक दो गागरी
बीती विभावरी जाग री!"
बेढब बनारसी अपनी पैरोडी कविताओं के लिए भी जाने जाते हैं.. पढ़िए जयशंकर प्रसाद की कविता पर लिखी गई उनकी पैरोडी कविता!
जयशंकर प्रसाद की कविता का लिंक भी पोस्ट में है!
आखिरी हीला
पत्नी गाँव के घर में हैं और अपने पति से आग्रह कर रही हैं कि आकर उन्हें ले जाएँ, लेकिन लेखक महोदय कोई न कोई बहाना करके टालते आ रहे हैं.. लेकिन अंत में गलती से एक ऐसा आखिरी हीला (बहाना) बना देते हैं कि चारों खाने चित्त!
प्रेमचंद ने अपने लेखन में उद्देश्य को सदैव ऊपर माना, इसलिए यह चुटीलापन जैसा इस कहानी में है, उनके अधिकांश लेखन में नहीं मिलता, लेकिन जहाँ मिलता है, मोहित किए बिना नहीं रहता। पढ़िए!
चल दी जी, चल दी
स्त्रियाँ कितनी भी बीमार हो या उनका मन न हो, घर के पुरुषों के कामों के लिए वे हमेशा तत्पर रहती हैं.. ऐसा होना चाहिए या नहीं यह अलग बात है लेकिन ऐसा होता आया है.. यही बात इतनी सरल, मज़ेदार और प्रभावी ढंग से अशोक चक्रधर ने इस कविता में कही है! इस कविता को देखने का एक नजरिया यह भी हो सकता है कि प्रेम स्वार्थ से हमें कितना दूर ले जाता है! ज़रूर पढ़िए! :)
शायरी का इंक़लाब
एक दिन अकस्मात
एक पुराने मित्र से
हो गई मुलाकात
कहने लगे- "जो लोग
कविता को कैश कर रहे हैं
वे ऐश कर रहे हैं
लिखने वाले मौन हैं
श्रोता तो...