Tag: Hindi Memoir
किताब अंश: ‘जीते जी इलाहाबाद’
'जीते जी इलाहाबाद' ममता कालिया की एक संस्मरणात्मक कृति है, जिसमें हमें अनेक उन लोगों के शब्दचित्र मिलते हैं जिनके बिना आधुनिक हिन्दी साहित्य...
वसंत का अग्रदूत
''इसीलिए मैं कल से कह रहा था कि सवेरे जल्दी चलना है, लेकिन आपको तो सिंगार-पट्टी से और कोल्ड-क्रीम से फ़ुरसत मिले तब तो! नाम 'सुमन' रख लेने से क्या होता है अगर सवेरे-सवेरे सहज खिल भी न सकें!''
कर्ज उतर जाता है एहसान नहीं उतरता
"हम मजरूह साहब के घर उन से मिलने जाते तो वह अपने बेडरूम में बैठे शतरंज खेलते रहते और हम लोगों से मिलने के लिए बाहर न निकलते। फिरदौस भाभी बेचारी लीपापोती करती रहतीं... कई और लेखक इस डर से कतरा जाते थे कि मैं कहीं मदद न माँग बैठूँ।..."
राही मासूम रज़ा के इस संस्मरण में पढ़िए उनके उन दिनों की बातें जब वे बम्बई में तंग स्थिति में थे.. और उन दिनों में कैसे उन्होंने कुछ लेखक दोस्तों का साथ पाया!
अरुंधती
उसका साथ यद्यपि तीन ही वर्ष रहा, पर उस संक्षिप्त अवधि में भी हम दोनों अटूट मैत्री की डोर में बँध गए। उन दिनों...