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नये ज़माने की मुकरी
'Naye Jamane Ki Mukri'
Bhartendu Harishchandra
सब गुरुजन को बुरो बतावै।
अपनी खिचड़ी अलग पकावै॥
भीतर तत्व न झूठी तेजी।
क्यों सखि सज्जन नहिं 'अँगरेजी'॥
तीन बुलाए तेरह आवैं।
निज निज...
हिन्दी मुकरी
चार पंक्तियों की एक पहेली है जो एक लड़की अपनी किसी दोस्त से बूझती है। वो लड़की अपने प्रीतम यानि लवर को याद करते हुए तीन पंक्तियाँ कहती है और जब चौथी पंक्ति में उसकी दोस्त पूछती है कि क्या तुम अपने साजन की बात कर रही हो तो लड़की झट मुकर जाती है और किसी अन्य चीज़ का नाम ले लेती है, लेकिन एक ऐसी चीज़ का नाम जो पहली तीन पंक्तियों में उसके द्वारा किए गए उसके साजन के वर्णन से मिलती हो..।