Tag: Hindi poetry
‘घर, माँ, पिता, पत्नी, पुत्र, बंधु!’ – कुँवर बेचैन की पाँच कविताएँ
कुँअर बेचैन हिन्दी की वाचिक परम्परा के प्रख्यात कवि हैं, जो अपनी ग़ज़लों, गीतों व कविताओं के ज़रिए सालों से हिन्दी श्रोताओं के बीच...
अपने ज़िले की मिट्टी से
कि अब तू हो गई मिट्टी सरहदी
इसी से हर सुबह कुछ पूछता हूँ
तुम्हारे पेड़ से, पत्तों से
दरिया औ' दयारों से
सुबह की ऊंघती-सी, मदभरी ठंडी...
धरती ने अपनी त्रिज्या समेटनी शुरू कर दी है
मेरी तबीयत कुछ नासाज़ है
बस ये देखकर कि
ये विकास की कड़ियाँ किस तरह
हाथ जोड़े भीख मांग रही हैं
मानवता के लिए
मैं कहता हूँ कि
बस परछाईयाँ...
गौरव अदीब की कविताएँ
गौरव सक्सेना 'अदीब' बतौर स्पेशल एजुकेटर इंटरनेशनल स्कूल में कार्यरत हैं और थिएटर व शायरी में विशेष रुचि रखते हैं। दस वर्षों से विभिन्न...
हरिवंशराय बच्चन की पहली और अन्तिम कविता
यह जानना एक आम जिज्ञासा है कि एक कविता लिखते समय किसी कवि के मन में क्या चल रहा होता है! इसके बावजूद कि...
झेलम
प्रेम, भरोसा, समर्पण.. ये सारे शब्द एक ऐसी गुत्थी में उलझे रहते हैं कि किसी एक की डोर खिंचे तो तनाव दूसरों में भी...
प्रेम की एक कविता ताल्लुक़ के कई सालों का दस्तावेज़ है
त्याग, समर्पण और यहाँ तक कि अनकंडीशनल लव भी प्रेम में पुरानी बातें हैं। और पुरानी इसलिए क्योंकि जब भी किसी ने इन शब्दों...
दर्पण को घूरते-घूरते
आज कुछ सत्य कहता हूँ,
ईर्ष्या होती है थोड़ी बहुत,
थोड़ी नहीं,
बहुत।
लोग मित्रों के साथ,
झुंडों में या युगल,
चित्रों से,
मुखपत्र सजा रहें हैं..
ऐसा मेरा कोई मित्र नहीं।
कुछ...
जीवन और कविता
जीवन और कविता, दोनों सहोदर होंगे किसी जन्म,
एक-सी दोनों की ही प्रवृत्ति, एक-से चालचलन,
इनका धर्म निर्भर करता है पानी के उस एक बवंडर पर,
जो...
कैसे रहे सभ्य तुम इतने दिनों
राहुल द्रविड़। एक ऐसा खिलाड़ी जिसने खेल को एक जंग समझा और फिर भी जंग में सब जायज़ होने को नकार दिया। एक ऐसा...
इस बार बसन्त के आते ही
इस बार बसन्त के आते ही
मैं पेड़ बनूँगा एक बूढ़ा
और पुरवा के कान में फिर
जाकर धीरे से बोलूँगा-
"शरद ने देखो इस बारी
अच्छे से अपना...
मैं समर अवशेष हूँ
'कुरुक्षेत्र' कविता और 'अँधा युग' व् 'ताम्बे के कीड़े' जैसे नाटक जिस बात को अलग-अलग शैलियों और शब्दों में दोहराते हैं, वहीं एक दोस्त...