Tag: Hindi Sansmaran

Jeete Jee Allahabad - Mamta Kalia

किताब अंश: ‘जीते जी इलाहाबाद’

'जीते जी इलाहाबाद' ममता कालिया की एक संस्‍मरणात्‍मक कृ‌ति है, जिसमें हमें अनेक उन लोगों के शब्दचित्र मिलते हैं जिनके बिना आधुनिक हिन्दी साहित्य...
Nirala, Agyeya, Vasant Ka Agradoot

वसंत का अग्रदूत

''इसीलिए मैं कल से कह रहा था कि सवेरे जल्दी चलना है, लेकिन आपको तो सिंगार-पट्टी से और कोल्ड-क्रीम से फ़ुरसत मिले तब तो! नाम 'सुमन' रख लेने से क्या होता है अगर सवेरे-सवेरे सहज खिल भी न सकें!''
Nirmal Verma - Krishna Sobti

निर्मल वर्मा

कृष्णा सोबती के संस्मरण संग्रह 'हम हशमत - भाग 1' से साभार बात पुरानी है। तब की जब निर्मल नये थे। वह पुरानी बात नयी...
Rahi Masoom Raza

कर्ज उतर जाता है एहसान नहीं उतरता

"हम मजरूह साहब के घर उन से मिलने जाते तो वह अपने बेडरूम में बैठे शतरंज खेलते रहते और हम लोगों से मिलने के लिए बाहर न निकलते। फिरदौस भाभी बेचारी लीपापोती करती रहतीं... कई और लेखक इस डर से कतरा जाते थे कि मैं कहीं मदद न माँग बैठूँ।..." राही मासूम रज़ा के इस संस्मरण में पढ़िए उनके उन दिनों की बातें जब वे बम्बई में तंग स्थिति में थे.. और उन दिनों में कैसे उन्होंने कुछ लेखक दोस्तों का साथ पाया!
Prithviraj Kapoor

कुआँ प्यासे के पास आया

अगर अभिनेता कवि गोष्ठियों में कविता सुनने जा सकते हैं तो कवि रंगमंच पर अभिनय देखने भी तो आ सकते हैं.. ऐसी ही बात किसी सज्जन ने पृथ्वीराज कपूर और निराला के बीच उठा दी थी, जिसे निराला ने सहज ही स्वीकार भी कर लिया था! उसी दिन पृथ्वीराज कपूर ने कहा था- 'कुआँ प्यासे के पास आया'! पढ़िए कविता, साहित्य और नाट्यकला की त्रिवेणी की महत्ता स्थापित करता पृथ्वीराज कपूर का यह संस्मरण..
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