Tag: Hindi Vyangya
छिपाने को छिपा जाता
कल रात मेरे कॉलेज के छात्रों ने मुझे पीट दिया। यों मेरी पिटाई तो ज़्यादा नहीं हुई, लेकिन ज़्यादा हो जाती, शौहरत तब भी...
पिटाई विमर्श में शान्तिदूत : ‘स्वाँग’ से किताब अंश
'स्वाँग' ज्ञान चतुर्वेदी का नया उपन्यास है, एक गाँव के बहाने समूचे भारतीय समाज के विडम्बनापूर्ण बदलाव की कथा इस उपन्यास में दिलचस्प ढंग...
शेर की गुफा में न्याय
"जो पशु न्याय की तलाश में शेर की गुफा में घुसा, उसका अंतिम फैसला कितनी शीघ्रता से हुआ, इसे सब जानते हैं।"
रसोई-घर और पाखाना
लघुकथा: 'रसोई-घर और पाखाना' - हरिशंकर परसाई
गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं...
भेड़-भेड़िये, भाई-भाई!
'भेड़-भेड़िये, भाई-भाई!' - रामनारायण उपाध्याय
बोले - कहानी कहो।
कहा - कहानी सुनो, एक था राजा।
बोले - राजाओं की कहानी हमें नहीं सुननी है, वे...
आलस्य-भक्त
"मनुष्य-शरीर आलस्य के लिए ही बना है। यदि ऐसा न होता, तो मानव-शिशु भी जन्म से मृग-शावक की भांति छलांगें मारने लगता, किंतु प्रकृति की शिक्षा को कौन मानता है। मनुष्य ही को ईश्वर ने पूर्ण आराम के लिए बनाया है। उसी की पीठ खाट के उपयुक्त चौड़ी बनाई है, जो ठीक उसी से मिल जावे। मनुष्य चाहे पेट की सीमा से भी अधिक भोजन कर ले, उसके आराम के अर्थ पीठ मौजूद है। ईश्वर ने तो हमारे आराम की पहले ही से व्यवस्था कर दी है। हम ही उसका पूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हैं।"
प्रोपगंडा-प्रभु का प्रताप
(In collaboration with Acharya Shivpoojan Sahay Smarak Nyas)
'प्रोपगंडा'-प्रभु का प्रताप प्रचंड है - 'जिन्हके जस-प्रताप के आगे, ससि मलीन रवि सीतल लागे।' यदि आज...
हिन्दी की आखिरी किताब
"आलोचक : वह असफल लेखक जो किसी भी लेखक को सफल होते नहीं देखना चाहता, आलोचक कहलाता है। वैसे आलोचक खटमलों की तरी लेखक का खून चूस चूसकर मोटाता है।"
जिसके हम मामा हैं
"समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं।"
भोलाराम का जीव
'रिटायर्ड' हो चुके भोलाराम ज़िन्दगी से भी रिटायर हो गए हैं लेकिन उनका जीव (आत्मा) यमदूत को चकमा देकर कहीं भाग गया है। नारद मुनि उसकी खोज में निकलते हैं तो अपनी वीणा तक से हाथ धोने के बाद उस जीव को एक ऐसी जगह पाते हैं जो उम्मीद से बाहर थी। कहाँ मिलता है भोलाराम का जीव, जानने के लिए पढ़िए हरिशंकर परसाई का यह व्यंग्य!
"महाराज, आजकल पृथ्वी पर इसका व्यापार बहुत चला है। लोग दोस्तों को फल भेजते है, और वे रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा देते हैं। होज़री के पार्सलों के मोज़े रेलवे आफिसर पहनते हैं। मालगाड़ी के डब्बे के डब्बे रास्ते में कट जाते हैं।"
एक था राजा
व्यंग्य: 'एक था राजा' - सुशील सिद्धार्थ
यह एक सरल, निष्कपट, पारदर्शी और दयालु समय की कहानी है। एक दिन किसी देश का राजा चिंता...
निंदा रस
"निंदा कुछ लोगों की पूंजी होती है। बड़ा लम्बा-चौड़ा व्यापार फैलाते हैं वे इस पूंजी से। कई लोगों की प्रतिष्ठा ही दूसरों की कलंक-कथाओं के परायण पर आधारित होती है। बड़े रस-विभोर होकर वे जिस-तिस की सत्य कल्पित कलंक-कथा सुनते हैं और स्वयं को पूर्ण संत समझने की तुष्टि का अनुभव करते हैं।"