Tag: Hope

Rahul Tomar

राहुल तोमर की कविताएँ

प्रतीक्षा उसकी पसीजी हथेली स्थिर है उसकी उँगलियाँ किसी बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं उसका निचला होंठ दाँतों के बीच नींद का स्वाँग भर जागने को विकल लेटा हुआ...
Shalabh Shriram Singh

जीवन बचा है अभी

जीवन बचा है अभी ज़मीन के भीतर नमी बरक़रार है बरक़रार है पत्थर के भीतर आग हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है! जीवन बचा है अभी रोशनी...
Rohit Thakur

सोलेस इन मे

कौन आएगा मई में सांत्वना देने कोई नहीं आएगा समय ने मृत्यु का स्वांग रचा है अगर कोई न आए तो बारिश तुम आना आँसुओं की तरह दो-चार बूँदों की...
Woman

निर्जला उपवास

वे सब 'सौभाग्यवती हो' का आशीष पाना चाहती हैं मन पर पड़ी गाँठों को रेशमी कपड़ों से सजा रही हैं और रेशमी कपड़े अपना सौभाग्य बता...
Kids

आशा अमरधन

समन्दर गहरा कि आशा गहरी। धरती भारी कि आशा भारी। पहाड़ अविचल कि आशा अविचल। फूल हलका कि आशा हलकी। हवा सत्वर कि आशा...
Akhileshwar Pandey

उम्मीद

'Ummeed', a poem by Akhileshwar Pandey रेत नदी की सहचर है जो पत्ते चट्टानों पर गिरकर सूख रहे होते हैं उन्हें अकेलेपन का नहीं, हरेपन से बिछुड़ने का दुःख सता...
Nirmal Gupt

एक शहर का आशावाद

'Ek Shehar Ka Ashavad', a poem by Nirmal Gupt मैं हमेशा उस महानगर में जाकर रास्ते भूल जाता हूँ जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह...
Manjula Bist

उम्मीद बाक़ी है

होश सम्भालते ही धरा के हर हिस्से के बाबत मुझे यही ताकीद किया गया कि "हर रोज़ सूरज के डूबने का अर्थ, घर लौट आना है उसके बाद किसी...
Paritosh Kumar Piyush

उम्मीद

'Ummeed', a poem by Paritosh Kumar Piyush (एक) तुम्हारी यादों को ओढ़ता हूँ तुम्हारी यादों को बिछाता हूँ अपने लिहाफ़ में छोड़ रखता हूँ तुम्हारे हिस्से की पूरी जगह तुम्हारी चुप्पी...
School Kids

मैं नहीं चाहता

'Main Nahi Chahta', a poem by Amar Dalpura मैं नहीं चाहता सूरज निकलते ही दुनिया के शोर में चिड़ियों की चहक मर जाए। सभी पक्षी सुबह का स्वागत करते...
Girl, Woman

उम्मीद अब भी बाकी है

"तुम्हारी माँ उतनी बुरी नहीं है", बाबा ने उस दिन शाम में कहा, "अभी भी वह हमसे उतना ही प्यार करती है, दो-चार रुपये के लिए उस पंजाबी से सम्बन्ध बनाया हो, यह अलग बात है।"
Balmukund Gupt

आशा का अन्त

"माई लार्ड! अबके आपके भाषण ने नशा किरकिरा कर दिया। संसार के सब दुःखों और समस्त चिन्ताओं को जो शिवशम्भु शर्मा दो चुल्लू बूटी पीकर भुला देता था, आज उसका उस प्यारी विजया पर भी मन नहीं है।"
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