Tag: Jainendra Kumar
तत्सत्
एक गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें...
ध्रुव यात्रा
“हाँ, स्त्री रो रही है, प्रेमिका प्रसन्न है। स्त्री की मत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनूँगी। दोनों जने प्रेम की ही सुनेंगे। प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता।"
"आचार्यजी, आप इन बातों को नहीं समझेंगे। शास्त्र में से स्त्री को आप नहीं जान लेंगे।"
“बेटी, फिर कोई किस में से किसको जानेगा, बता तो?"
“सब कुछ प्रेम में से जाना जायगा।"
“मैं स्त्री की बात नहीं सुनुँगा। मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है।"
अपना अपना भाग्य
"इसे खाने के लिए कुछ देना चाहता था", अंग्रेजी में मित्र ने कहा- "मगर, दस-दस के नोट हैं।"
मैंने कहा- "दस का नोट ही दे दो।"
सकपकाकर मित्र मेरा मुँह देखने लगे- "अरे यार! बजट बिगड़ जाएगा। हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं हैं।"
बाजार का जादू
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है। पर जैसे चुम्बक का जादू लोहे...
एक शांत नास्तिक संत: प्रेमचंद
मुझे एक अफ़सोस है, वह अफ़सोस यह है कि मैं उन्हें पूरे अर्थों में शहीद क्यों नहीं कह पाता हूँ! मरते सभी हैं, यहाँ...
पाजेब
जैनेन्द्र कुमार की यह कहानी एक छोटी सी घटना के ज़रिए बच्चों के मनोविज्ञान और भावनाओं से भी परिचित करवाती है और इसके प्रति बड़े लोगों की अज्ञानता और अनदेखी से भी... पढ़िए हिन्दी की एक उत्कृष्ट कहानी 'पाजेब'!