Tag: Jaishankar Prasad
ममता
रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के...
विजया
"अत्याचारी समाज पाप कह कर कानों पर हाथ रखकर चिल्लाता है; वह पाप का शब्द दूसरों को सुनाई पड़ता है; पर वह स्वयं नहीं सुनता।"
कहानी पढ़कर यह ज़रूर बताइएगा कि आपको क्या लगता है, कहानी में सुन्दरी का कमल से क्या सम्बन्ध था?
ले चल वहाँ भुलावा देकर
'Le Chal Wahan Bhulawa Dekar' - Jaishankar Prasad
ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक! धीरे-धीरे।
जिस निर्जन में सागर लहरी,
अम्बर के कानों में गहरी,
निश्छल प्रेम-कथा कहती...
शरणागत
सिनेमा में जब कभी अंग्रेज़ों से हमारे सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विषय सामने आता है तो बहुत बढ़ा-चढ़ाकर उन्हें अपने रंग में ढाल देने की परिस्थितियाँ दिखाई जाती हैं, चाहे 'पूरब और पश्चिम' हो या 'नमस्ते लंडन'! साहित्य में भी यह काम हो चुका है, इस कहानी के माध्यम से आप पढ़ सकते हैं... बस एक-दो उनकी संस्कृति की बातें जो इस कहानी में सामने आयीं और वाजिब थीं, वे भी अपना ली जातीं तो सोने पर सुहागा हो जाता।
बीती विभावरी जाग री
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल...
मेरी आँखों की पुतली में
मेरी आँखों की पुतली में
तू बनकर प्रान समा जा रे!
जिससे कण-कण में स्पंदन हों
मन में मलायानिल चंदन हों
करुणा का नव अभिनन्दन हों
वह जीवन गीत...
समुद्र-संतरण
धीवर-बाला ने कहा- "आओगे?"
लहरों को चीरते हुए सुदर्शन ने पूछा- "कहाँ ले चलोगी?"
"पृथ्वी से दूर जल-राज्य में; जहाँ कठोरता नहीं; केवल शीतल, कोमल और तरल आलिंगन है; प्रवञ्चना नहीं, सीधा आत्मविश्वास है; वैभव नहीं, सरल सौन्दर्य है।"
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद के उद्धरण | Quotes by Jaishankar Prasad
"धर्म जब व्यापार हो गया और उसका कारबार चलने लगा, फिर तो उसमें हानि और लाभ...
स्वर्ग के खंडहर में
“वही स्वर्ग तो नरक है, जहाँ प्रियजन से विच्छेद है। वही रात प्रलय की है, जिसकी कालिमा में विरह का संयोग है। वह यौवन निष्फल है, जिसका हृदयवान् उपासक नहीं। वह मदिरा हलाहल है, पाप है, जो उन मधुर अधरों को उच्छिष्ट नहीं। वह प्रणय विषाक्त छुरी है, जिसमें कपट है। इसलिये हे जीवन, तू स्वप्न न देख, विस्मृति की निद्रा में सो जा! सुषुप्ति यदि आनन्द नहीं, तो दु:खों का अभाव तो है। इस जागरण से, इस आकांक्षा और अभाव के जागरण से, वह निर्द्वंद्व सोना कहीं अच्छा है मेरे जीवन!”
दो बूँदें
चाँद को कभी अमृत की एक बड़ी सी बूँद-सा सोचा है?
सहयोग
मोहन ने चाहा कि उसकी पत्नी मनोरमा उसकी दासी बनकर रहे, उसके कामों और व्यवहार में दखल न दे, और उससे कोई प्रश्न न करे.. वैसा ही हुआ.. लेकिन अब मोहन को यह भी सह्य नहीं. ऐसा क्यों, पढ़िए कहानी 'सहयोग' में!
सिकंदर की शपथ
सिकंदर को उस सामान्य दुर्ग के अवरोध में तीन दिन व्यतीत हो गये। विजय की सम्भावना नहीं है, सिकंदर उदास होकर कैम्प में लौट गया, और सोचने लगा। सोचने की बात ही है। ग़ाजा और परसिपोलिस आदि के विजेता को अफगानिस्तान के एक छोटे-से दुर्ग के जीतने में इतना परिश्रम उठाकर भी सफलता मिलती नहीं दिखाई देती, उलटे कई बार उसे अपमानित होना पड़ा।