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Saadat Hasan Manto

1919 की एक बात

"उन्होंने अपनी ज़र्क़-बर्क़ पिशवाज़ें नोच डालीं और अलिफ़ नंगी हो गईं और कहने लगीं... लो देख लो... हम थैले की बहनें हैं... उस शहीद की जिसके ख़ूबसूरत जिस्म को तुमने सिर्फ़ इसलिए अपनी गोलियों से छलनी-छलनी किया था कि उसमें वतन से मोहब्बत करने वाली रूह थी..." आज जलियाँवाला बाग हत्याकांड को सौ वर्ष हो गए हैं! ऐसे निर्मम हत्याकांडों में मौत के सरकारी और वास्तविक आकड़ों के परे भी ऐसी यातनाएँ होती हैं जो केवल पीड़ित लोगों ने देखी हैं.. मंटो की यह कहानी उन्हीं यातनाओं की एक झलक पाठकों के सामने रखती है.. पढ़िए!
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