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Jyoti Shobha

ज्योति शोभा की कविताएँ

आमंत्रण की कला दस्तक का आधा रस किवाड़ सोख लेता है शेष आधा टपक जाता है पककर इस ऋतु ऊपर के ताखे में संकोच रखकर सोती है देह अलमारियों...
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