Tag: Kailash Vajpeyi

Kailash Vajpeyi

जंगल की कविता

मैंने तो पहले ही कहा था जंगल में नहीं जाना जंगल तुम झेल नहीं पाओगे तुम नामवालों की दुनिया में उपजे हो जंगल में सब कुछ निर्नाम है पत्र...
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प्यार करता हूँ

माथे की आँच से डोरा सुलगता है मोम नहीं गलता देह बन्द नदिया उफनाती है नीली फिर काली फिर श्वेत हो जाती है दार्शनिक उँगलियों से चितकबरे फूल नहीं झरती है राख असहाय होता...
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रोटी और रब

इतने लोग नहीं रहे दुनिया में शुरू से कितने लिखा नहीं मिलता किसी भी किताब में पटकथा रहे सहे लोगों की व्यथा रब और रोटी का द्वंद्व है अरबों-ख़रब साल...
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जो है

बचपन में वह नास्तिक नहीं था, पिता को देखकर याद आ जाया करते थे देवता सुन रखी थीं जिनकी कहानियाँ माँ से, पत्थर हुई औरत का आख्यान पढ़कर उसने यह...
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मुझे नींद नहीं आती

मेरा आकाश छोटा हो गया है मुझे नींद नहीं आती कहाँ हो तुम? इस विस्तृत परिवार के धड़कते सदस्यो! मैं तुम्हें आवाज़ देता हूँ मेरा आकाश छोटा हो गया...
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सूफ़ीनामा

घर, कपड़े, नौकरी, शहर बिना बदले बिना प्रार्थना या उपवास के तुम जो उतर चले आए हो फ़ना होने इस समुद्र में इसे कोई नाम नहीं देना नामों में...
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क्षणिकाएँ : कैलाश वाजपेयी

स्पन्दन कविता हर आदमी अपनी समझ-भर समझता है ईश्वर एक कविता है! मोमिन पूजाघर पहले भी होते थे, हत्याघर भी पहले होते थे हमने यही प्रगति की है दोनों को एक में मिला दिया। आदिम...
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हत्यारा

बच्चा तितली पकड़ रहा है बच्चा नादान है होगा बच्चे तो होते ही हैं तुमने वह चीख़ भी देखी नयी तरह से क्या सुना इस दृश्य को बच्चा हत्यारा है वह किसी फूल...
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जब तुम्हें पता चलता

अगर तुम्हें गर्भ में पता चलता, जिस घर में तुम होने वाले हो नमाज़ नहीं पढ़ता, वहाँ कोई यज्ञ होम कीर्तन नहीं होता, कोई नहीं जाता रविवार को गिरिजाघर या...
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