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Khurshid-ul-Islam

नई मरियम

कैसी तवाना, कैसी चंचल, कितनी शोख़ और क्या बेबाक कैसी उमंगें, कैसी तरंगें, कितनी साफ़ और कैसी पाक होश की बातें, शौक़ की घातें, जोश-ए-जवानी सीना-चाक ख़ंदा...
Khurshid-ul-Islam

प्यास

दूर से चल के आया था मैं नंगे पाँव, नंगे सर सर में गर्द, ज़बाँ में काँटे, पाँव में छाले, होश थे गुम इतना प्यासा था...
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