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क्षणिकाएँ : मदन डागा
कुर्सी
कुर्सी
पहले कुर्सी थी
फ़क़त कुर्सी,
फिर सीढ़ी बनी
और अब
हो गई है पालना,
ज़रा होश से सम्भालना!
भूख से नहीं मरते
हमारे देश में
आधे से अधिक लोग
ग़रीबी की रेखा के...
तब के नेता, अब के नेता
तब के नेता जन-हितकारी,
अब के नेता पदवीधारी।
तब के नेता किए कमाल,
अब के नित पहने जयमाल।
तब के नेता पटकावाले,
अब के नेता लटका वाले।
तब के नेता...
जिसके हम मामा हैं
"समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं।"