Tag: Leeladhar Jagudi

Leeladhar Jagudi

ऊँचाई है कि

मैं वह ऊँचा नहीं जो मात्र ऊँचाई पर होता है कवि हूँ और पतन के अन्तिम बिन्दु तक पीछा करता हूँ हर ऊँचाई पर दबी दिखती...
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जब मैं आया था

जब मैं आया था तेज़ क़दम झुके माथे के बावजूद संकरी गलियों और चौड़े रास्तों पर लम्बी-रुलाइयों के अलावा सिसकना भी सुनायी दे जाता था कमज़ोर आवाज़...
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प्रेम व्‍यापार

किसी दिन तुमने कह दिया कि दिखाओ नदी असल और सच्‍ची। तो मैं क्‍या करूँगा? आज तो यह कर सकता हूँ—घर के सीले कोने में जाकर...
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तुम अब स्‍मृति हो

पूरे जंगल भर के पखेरू थे तुम्‍हारे अकेले प्राण जो इतने पंख गिरा गए चारों ओर तुम्‍हारी ही तुम्‍हारी फड़फड़ाहट है नदी के दोनों ओर जैसे मेला...
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कला भी ज़रूरत है

मेहनत और प्रतिभा के खेत में समूहगान से अँकुवाते कुछ बूटे फूटे हैं जिनकी वजह से कठोर मिट्टी के भी कुछ हौसले टूटे हैं कुछ धब्बे अपने...
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अपने अन्दर से बाहर आ जाओ

हर चीज़ यहाँ किसी न किसी के अन्दर है हर भीतर जैसे बाहर के अन्दर है फैलकर भी सारा का सारा बाहर ब्रह्माण्ड के अन्दर है बाहर सुन्दर...
Leeladhar Jagudi

कविता एक नया प्रयास माँगती है

कविता एक बने-बनाए शिल्‍प और आज़माए हुए तौर-तरीक़ों वाली रचना का नाम नहीं है। कविता व्‍यावहारिक जीवन में एक वैचारिक प्रयोग भी है। यह प्रयोग केवल...
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ईश्वर का प्रश्न

यह कविता यहाँ सुनें: https://youtu.be/DDw6iLNjd3E ईश्‍वर तुम शब्‍द हो कि वाक्‍य हो? अर्द्धविराम हो या पूर्णविराम? सम्बोधन हो या प्रश्‍नचिह्न? न्‍याय हो या न्‍यायशास्‍त्री? जन्‍म हो कि मृत्‍यु या तुम बीच...
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