Tag: Letter

Silwaton Se Bhara Khat - Tasneef

सिलवटों से भरा ख़त

पूरी रात बिस्तर पर ख़ामोशी थी, बाहर की तरफ़ से एक नीली रोशनी धीरे-धीरे अपना अक्स बड़ा करती जा रही थी और मैं सोच...
Muktibodh

मलय के नाम मुक्तिबोध का पत्र

राजनाँद गाँव 30 अक्टूबर प्रिय मलयजी आपका पत्र यथासमय मिल गया था। पत्रों द्वारा आपके काव्य का विवेचन करना सम्भव होते हुए भी मेरे लिए स्वाभाविक नहीं...
Prakash

पता

मैंने उसे ख़त लिखा था और अब पते की ज़रूरत थी मैंने डायरियाँ खँगालीं किताबों के पुराने कबाड़ में खोजा फ़ोन पर कई हितैशियों से पूछा और हारकर बैठ...
Jainendra Kumar, Premchand

प्रेमचंद का जैनेन्द्र को पत्र – 1, सितम्बर, 1933

जागरण कार्यालय, 1 सितम्बर, 1933 प्रिय जैनेन्द्र, तुम्हारा पत्र मिला। हाँ भाई, तुम्हारी कहानी बहुत देर में पहुँची। अब सितम्बर में तुम्हारी और 'अज्ञेय' जी की,...
Qateel Shifai

तेरे ख़तों की ख़ुशबू

तेरे ख़तों की ख़ुशबू हाथों में बस गई है. साँसों में रच रही है ख़्वाबों की वुसअतों में इक धूम मच रही है जज़्बात के गुलिस्ताँ महका...
Letter

अपेक्षाओं के बियाबान

सिलीगुड़ी 4 फ़रवरी, 70 आदरणीय दादा सादर प्रणाम कल रात फिर वही स्वप्न देखा। मैं और सुरभित समुद्र किनारे क़दमों के निशान छोड़ते बढ़े जा रहे हैं। अपर्णा...
Nehru Indira

खेती से पैदा हुई तब्दीलियाँ

अनुवाद: प्रेमचंद अपने पिछले ख़त में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी सिर्फ़ शिकार पर...
Safia Akhtar, Jaan Nisar Akhtar

सफ़िया का पत्र जाँ निसार अख़्तर के नाम

भोपाल, 15 जनवरी, 1951 अख़्तर मेरे, पिछले हफ़्ते तुम्हारे तीन ख़त मिले, और शनीचर को मनीआर्डर भी वसूल हुआ। तुमने तो पूरी तनख़्वाह ही मुझे भेज दी... तुम्हें...
Pallavi Vinod

एक ख़त स्वयंसिद्धाओं के नाम

एक ख़त हर उस लड़की के नाम जिसे अपनी ज़िन्दगी ख़ुद बनानी है... अभी तो धूप गुनगुनी है, बीतते समय के साथ ये चटख होती...
Jawaharlal Nehru and Indira Gandhi

मज़हब की शुरुआत और काम का बँटवारा

अनुवाद: प्रेमचंद पिछले ख़त में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने ज़माने में आदमी हर एक चीज़ से डरता था और ख़याल करता था कि...
Letter

मैं तुमको एक ख़त लिखता हूँ

'Main Tumko Ek Khat Likhta Hoon', a poem by Pratap Somvanshi उत्तर की उम्मीद बिना ही रोज़ सवेरे मैं तुमको एक ख़त लिखता हूँ ये ख़त क्या है बस...
Gaurow Gupta

स्मृतियों की जेल से एक क़ैदी का ख़त

मेरी उदासी में, तुम ऊष्मा थी ठिठुरती ज़िन्दगी की उम्मीद जिस पर मैं अपना मन सेंकता था... तुम्हारी मौजूदगी मेरे बहुत अकेलेपन को किसी जादू की तरह, कम अकेलेपन में...
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