Tag: Lockdown

Om Nagar

जीवन की बात

मैं इस हृदय विदारक समय में केवल जीवन के बारे में सोचता हूँ और उसे मेरी मृत्यु की चिन्ता लगी रहती है जबकि मैंने कई बार कहा भी क्या...
Gaurav Bharti

कविताएँ: दिसम्बर 2020

1 हॉस्टल के अधिकांश कमरों के बाहर लटके हुए हैं ताले लटकते हुए इन तालों में मैं आने वाला समय देख रहा हूँ मैं देख रहा हूँ कमरों के भीतर अनियन्त्रित...
nirmal gupt

साइकिल पर टँगी ढोलक

अलसभोर जा रहा साइकिल पर बांधे सलीक़े से मढ़ी, हरी पीली ढोलकें, इसकी थाप पर सदियाँ गाती आयीं अपने समय के मंगलगान जटिल समय में सवाल यह, कौन...
Indian Old Woman

कुछ जोड़ी चप्पलें, इमाम दस्ता

कुछ जोड़ी चप्पलें उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मनुष्य होने के दावे कितने झूठे पड़ चुके थे तुम्हारी आत्म संलिप्त दानशीलता के बावजूद, थोड़ा-सा भूगोल लिए आँखों में वे बस...
Lockdown Migration

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

1 वे हमारे सामने थे और पीछे भी दाएँ थे और बाएँ भी वे हमारे हर तरफ़ थे बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग जो अपने...
Shiv Kushwaha

शिव कुशवाहा की कविताएँ

दुनिया लौट आएगी निःशब्दता के क्षणों ने डुबा दिया है महादेश को एक गहरी आशंका में जहाँ वीरान हो चुकी सड़कों पर सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश एक...
Rohit Thakur

मैं अपने मरने के सौन्दर्य को चूक गया

एक औरत मुजफ़्फ़रपुर जंक्शन के प्लेटफ़ार्म पर मरी लेटी है उसका बच्चा उसके पास खेल रहा है बच्चे की उम्र महज़ एक साल है एक औरत की गोद में...
Rohit Thakur

हम सब लौट रहे हैं

हम सब लौट रहे हैं ख़ाली हाथ भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं हमारे दिलो-दिमाग़ में गहरे भाव हैं पराजय के इत्मीनान से आते समय अपने कमरे को भी...
Gunjan Srivastava

कविताएँ – मई 2020

कोरोना के बारे में जानती थी दादी मेरी बूढ़ी हो चली दादी को हो गयी थी सत्तर वर्ष पहले ही कोरोना वायरस के आने की ख़बर वो कह...
Helping the Poor, Begging

और कितनी सुविधा लेगें

हर त्रासदी में ये पेट खोलकर बैठ जाते हैं बहुत बड़ा होता है इनका पेट इतना बड़ा कि ख़रबों के ख़र्च से बना स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भी...
Labours

आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ

आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ (श्रमिक) अप्रैल के नंगे-नीले दरख़्तों और टहनियों से प्रक्षालित ओ विस्तृत आकाश! अपने प्रकाश के चाकुओं से मुझ पर नक़्क़ाशी करो... सम्बोधन हे! अरे! 1 हम अपनी कल्पनाओं में छोटी-छोटी...
Gaurav Bharti

आजकल, वे लौट रहे हैं मानो लौट रही हों हताश चींटियाँ

आजकल 1 रेंग रहा है यह वक़्त मेरे जिस्म पर कीड़े की तरह अपनी हथेलियों से लगातार मैं इसे झटकने की कोशिश कर रहा हूँ... 2 वृक्ष की शाख़ से टूटकर...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)