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लॉकडाउन समय
1
इस समय सबका दुःख साझा है
सुख,
किसी ग़लत पते पर फँसा हुआ शायद
सबकी प्रार्थनाओं में उम्मीद का प्रभात
संशय के बादल से ढका पड़ा है
समय
शोर को भेद...
रोटी की तस्वीर
यूँ तो रोटी किसी भी रूप में हो
सुन्दर लगती है
उसके पीछे की आग
चूल्हे की गन्ध और
बनाने वाले की छाप दिखायी नहीं देती
लेकिन होती हमेशा रोटी के...
बीस-बीस की बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा की रात
चीथड़े और लोथड़ों के बीच
पूरे चाँद-सी गोल रोटियों की फुलकारियाँ
उन मज़दूरों के हाथों का हुनर पेश कर रही थीं
जो अब रेलवे...
ममता जयंत की कविताएँ
चुनौतियाँ पेट से हैं
इन दिनों रवि भारी है रबी पर
और सुनहरी चमक लिए खड़ी हैं बालियाँ
देख रही हैं बाट मज़दूरों की
कसमसा रही हैं मीठे...
कोरोनावायरस और शिन्निन क्वायलो
कोरोनावायरस
फैला रहा है अपने अदृश्य पाँव
पहुँच चुका है वह
दुनिया के कई कोनों में
ताइवान में भी कुछ मामले सामने आ चुके हैं
इन दिनों दुनिया के...
प्रवासी मज़दूर
मैंने कब माँगा था तुमसे
आकाश का बादल
धरती का कोना
सागर की लहर
हवा का झोंका
सिंहासन की धूल
पुरखों की राख
या अपने बच्चे के लिए दूध
यह सब वर्जित...
लाॅकडाउन के दसवें दिन में
लाॅकडाउन के दसवें दिन में
चिंटू लगा नज़ारे गिनने
पापा ने दरवाज़ा खोला
चिंटू फिर चहक के बोला-
'खिड़की पे चिड़िया थी आयी
मैंने उसकी ड्राइंग बनायी
देखो पापा कैसी...
पहली बार
इन दिनों
कैसी झूल रही गौरेया केबल तार पर
कैसा सीधा दौड़ रहा वह गली का डरपोक कुत्ता
कैसे लड़ पड़े बिल्ली के बच्चे चौराहे पर ही
कैसे...
राहुल बोयल की कविताएँ
1
एक देवी की प्रतिमा है - निर्वसन
पहन लिया है मास्क मुख पर
जबकि बग़ल में पड़ा है बुरखा
देवताओं ने अवसान की घड़ी में भी
जारी रखी...
घटना नहीं है घर लौटना
रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ
घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ
दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता
न जाने कहाँ-कहाँ से
पैदल चलते...
राहुल बोयल की कविताएँ
1
नदियों में लहलहा रहा था पानी
और खेतों में फ़सल,
देखकर हर ओर हरियाली
हरा हो ही रहा था मन
कि अचानक फट पड़ता है
बेवक़्त काला पड़ा हुआ...