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Deepak Jaiswal

प्रेम

'Prem', Hindi Kavita by Deepak Jaiswal पृथ्वी किसी शेषनाग के फन पर नहीं टिकी न ही लगाती है परिक्रमा किसी तारे की प्रेम ही वह धुरी है जिसके भीतर साँस...
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