Tag: Madan Daga

Man holding train handle

ज़िन्दगी का लेखा

मैंने तेरी अलकों को नहीं अपनी उलझनों को सुलझाया है! अपने बच्चों को नहीं साहबज़ादों को दुलराया है! तब तुम्हें मुझसे शिकायत होना वाजिब है जब साहब को भी शिकायत...
Madan Daga

रेखांकित हक़ीक़त

किसने कह दिया तुम्हें कि मैं कविता लिखता हूँ मैं कविता नहीं लिखता मैंने तो सिर्फ़ जन-मन के दर्द के नीचे एक रेखा खींच दी है हाँ, दर्द के नीचे फ़क़त...
Madan Daga

कुर्सी-प्रधान देश

पहले लोग सठिया जाते थे अब कुर्सिया जाते हैं! दोस्त मेरे! भारत एक कृषि-प्रधान नहीं कुर्सी-प्रधान देश है! हमारे संसद-भवन के द्वार में कुछ स्प्रिगें ही ऐसी लगी हैं कि समाजवादी...
Madan Daga

क्षणिकाएँ : मदन डागा

कुर्सी कुर्सी पहले कुर्सी थी फ़क़त कुर्सी, फिर सीढ़ी बनी और अब हो गई है पालना, ज़रा होश से सम्भालना! भूख से नहीं मरते हमारे देश में आधे से अधिक लोग ग़रीबी की रेखा के...
Madan Daga

वोट देकर

'Vote Dekar', a poem by Madan Daga तुम दिल देकर पछता रही हो मैं वोट देकर रो रहा हूँ जम्हूरियत का भार सिर पै ढो रहा हूँ! तुम जब चाहो अपना...
Madan Daga

कविता का अर्थ

'Kavita Ka Arth', a poem by Madan Daga मेरी भाषा का व्याकरण पाणिनि नहीं पददलित ही जानते हैं क्योंकि वे ही मेरे दर्द को पहचानते हैं मेरी कविता का कमल बग़ीचे...
कॉपी नहीं, शेयर करें! ;)