Tag: Mahadevi Verma
नारीत्व का अभिशाप
'शृंखला की कड़ियाँ' से
चाहे हिन्दू नारी की गौरव-गाथा से आकाश गूँज रहा हो, चाहे उसके पतन से पाताल काँप उठा हो परन्तु उसके लिए...
अभागी स्त्री
'अतीत के चलचित्र' से
भारी ढक्कन से ढँके दीपक के समान आकाश में बिजली बुझ गयी थी। सन्ध्या से ही हवा बादलों की तह-पर-तह जमाने...
क्यों इन तारों को उलझाते?
क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों
आ-आकर फिर जाते?
पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा...