Tag: Mahesh Anagh
इति नहीं होती
धीर धरना
राग वन से रूठकर जाना नहीं पाँखी।
फिर नए अँखुए उगेंगे
इन कबन्धों में,
यह धुँआ कल बदल सकता
है सुगन्धों में,
आस करना
कुछ कटे सिर देख घबराना...
तप करके हम
तप करके हम
भोजपत्र पर लिखते रहे ऋचा,
कैसे लिखें वंदना
सिंहासन के पाए पर।
इधर क्रौंच की करुणा
हम को संत बनाती है,
उधर सियासत
निर्वसना होकर आ जाती है,
शब्द...
नहीं-नहीं, भूकम्प नहीं है
नहीं नहीं, भूकम्प नहीं है
नहीं हिली धरती।
सरसुतिया की छान हिली है
कागा बैठ गया था
फटी हुई चिट्ठी आयी है
ठनक रहा है माथा
सींक सलाई हिलती है
सिंदूर माँग...
कौन है
'Kaun Hai', a poem by Mahesh Anagh
कौन है? सम्वेदना!
कह दो अभी घर में नहीं हूँ।
कारख़ाने में बदन है
और मन बाज़ार में,
साथ चलती ही नहीं
अनुभूतियाँ...