Tag: Majaz Lakhnavi

Majaz Lakhnavi

नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता

नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता कभी साहिल पे रहकर शौक़ तूफ़ानों से टकराएँ कभी तूफ़ाँ में रहकर फ़िक्र है...
Majaz Lakhnavi

नज़्र-ए-दिल

अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं क्या समझती हो कि तुम को भी भुला सकता हूँ मैं कौन तुमसे छीन सकता है...
Majaz Lakhnavi

मेहमान

आज की रात और बाक़ी है कल तो जाना ही है सफ़र पे मुझे ज़िंदगी मुंतज़िर है मुँह फाड़े ज़िंदगी ख़ाक ओ ख़ून में लुथड़ी आँख में शोला-हा-ए-तुंद...
Majaz Lakhnavi

हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए

हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए दिल की जानिब नज़र है क्या कहिए फिर वही रहगुज़र है क्या कहिए ज़िंदगी राह पर है क्या कहिए हुस्न ख़ुद पर्दा-वर...
Majaz Lakhnavi

ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई

ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँढा करे कोई तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया किस दिल...
Majaz Lakhnavi

इलाहाबाद से

इलाहाबाद में हर-सू हैं चर्चे कि दिल्ली का शराबी आ गया है ब-सद आवारगी या सद तबाही ब-सद ख़ाना-ख़राबी आ गया है गुलाबी लाओ, छलकाओ, लुंढाओ कि शैदा-ए-गुलाबी आ...
Majaz Lakhnavi

एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर

"क्या तिरी नज़रों में ये रंगीनियाँ भाती नहीं क्या हवा-ए-सर्द तेरे दिल को तड़पाती नहीं क्या नहीं होती तुझे महसूस मुझ को सच बता तेज़ झोंकों में हवा के गुनगुनाने की सदा..."
Majaz Lakhnavi

साक़ी

मिरी मस्ती में भी अब होश ही का तौर है साक़ी तिरे साग़र में ये सहबा नहीं कुछ और है साक़ी भड़कती जा रही है दम-ब-दम...
Majaz Lakhnavi

मज़दूरों का गीत

मेहनत से ये माना चूर हैं हम आराम से कोसों दूर हैं हम पर लड़ने पर मजबूर हैं हम मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम गो आफ़त ओ...
Majaz Lakhnavi

मजबूरियाँ

मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता कोई नग़्मे तो क्या अब मुझसे मेरा...
Majaz Lakhnavi

नन्ही पुजारन

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन पतली बाँहें, पतली गर्दन भोर भए मन्दिर आयी है आयी नहीं है, माँ लायी है वक़्त से पहले जाग उठी है नींद अभी आँखों में भरी...
Majaz Lakhnavi

बोल! अरी ओ धरती बोल!

बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंहासन डाँवाडोल! बादल बिजली रैन अँधयारी दुख की मारी प्रजा सारी बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं दुखिया नर हैं दुखिया नारी बस्ती बस्ती लूट...
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