Tag: Majaz Lakhnavi
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता
कभी साहिल पे रहकर शौक़ तूफ़ानों से टकराएँ
कभी तूफ़ाँ में रहकर फ़िक्र है...
नज़्र-ए-दिल
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
क्या समझती हो कि तुम को भी भुला सकता हूँ मैं
कौन तुमसे छीन सकता है...
मेहमान
आज की रात और बाक़ी है
कल तो जाना ही है सफ़र पे मुझे
ज़िंदगी मुंतज़िर है मुँह फाड़े
ज़िंदगी ख़ाक ओ ख़ून में लुथड़ी
आँख में शोला-हा-ए-तुंद...
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
दिल की जानिब नज़र है क्या कहिए
फिर वही रहगुज़र है क्या कहिए
ज़िंदगी राह पर है क्या कहिए
हुस्न ख़ुद पर्दा-वर...
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई
हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँढा करे कोई
तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया
किस दिल...
इलाहाबाद से
इलाहाबाद में हर-सू हैं चर्चे
कि दिल्ली का शराबी आ गया है
ब-सद आवारगी या सद तबाही
ब-सद ख़ाना-ख़राबी आ गया है
गुलाबी लाओ, छलकाओ, लुंढाओ
कि शैदा-ए-गुलाबी आ...
एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर
"क्या तिरी नज़रों में ये रंगीनियाँ भाती नहीं
क्या हवा-ए-सर्द तेरे दिल को तड़पाती नहीं
क्या नहीं होती तुझे महसूस मुझ को सच बता
तेज़ झोंकों में हवा के गुनगुनाने की सदा..."
साक़ी
मिरी मस्ती में भी अब होश ही का तौर है साक़ी
तिरे साग़र में ये सहबा नहीं कुछ और है साक़ी
भड़कती जा रही है दम-ब-दम...
मज़दूरों का गीत
मेहनत से ये माना चूर हैं हम
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम
मज़दूर हैं हम, मज़दूर हैं हम
गो आफ़त ओ...
मजबूरियाँ
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
कोई नग़्मे तो क्या अब मुझसे मेरा...
नन्ही पुजारन
इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन
पतली बाँहें, पतली गर्दन
भोर भए मन्दिर आयी है
आयी नहीं है, माँ लायी है
वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आँखों में भरी...
बोल! अरी ओ धरती बोल!
बोल! अरी ओ धरती बोल!
राज सिंहासन डाँवाडोल!
बादल बिजली रैन अँधयारी
दुख की मारी प्रजा सारी
बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं
दुखिया नर हैं दुखिया नारी
बस्ती बस्ती लूट...