Tag: Makhanlal Chaturvedi

Makhanlal Chaturvedi

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों...
Makhanlal Chaturvedi

बोल तो किसके लिए मैं

बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं, आँखों की बूँदें बूँदों पर, चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं! रे निठुर...
Makhanlal Chaturvedi

वायु

चल पड़ी चुपचाप सन-सन-सन हवा, डालियों को यों चिढ़ाने-सी लगी, आँख की कलियाँ, अरी, खोलो ज़रा, हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी, पत्तियों की चुटकियाँ झट दीं बजा, डालियाँ कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं, किस...
Makhanlal Chaturvedi

दूबों के दरबार में

क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आयी इस किरणों के ज्वार में! क्या देखें तरुओं को, उनके फूल लाल अंगारे हैं, बन के...
Makhanlal Chaturvedi

इस तरह ढक्कन लगाया रात ने

इस तरह ढक्कन लगाया रात ने इस तरफ या उस तरफ कोई न झाँके। बुझ गया सूर्य बुझ गया चाँद, त्रस्त ओट लिये गगन भागता है तारों की मोट...
Flower, Peace, War, Love

कमाल की प्रेम-कहानी

कमाल ने पूछा, "क्या तुम झुकोगी?" लतीफह ने कहा, “क्या तुम उस झुकाव की कीमत पर खुद झुककर उस झुके हुए पन को अपने हृदय से लगाओगे?” --- तुर्की के राष्ट्रपति से एक खबरी का प्रेम और फिर प्रेम और शासन का द्वंद्व! जहाँ 'पुष्प की अभिलाषा' जैसी कविताएँ आज भी हमारा मन राष्ट्र-प्रेम से भर देती हैं, वहीं माखनलाल चतुर्वेदी की यह कहानी, प्रेम को शासन से एक हाथ ऊपर रख कर देखती है। पढ़िए :)
Makhanlal Chaturvedi

भाई, छेड़ो नहीं, मुझे

भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो, यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो, रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मंजु महल में, मुझे दुःखो की इसी झोपड़ी में सोने...
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