Tag: Mamta Kalia
किताब अंश: ‘जीते जी इलाहाबाद’
'जीते जी इलाहाबाद' ममता कालिया की एक संस्मरणात्मक कृति है, जिसमें हमें अनेक उन लोगों के शब्दचित्र मिलते हैं जिनके बिना आधुनिक हिन्दी साहित्य...
‘अन्दाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ : रवींद्र कालिया की स्मृति गाथा
किताब: 'अन्दाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा
लेखिका: ममता कालिया
टिप्पणी: देवेश पथ सारिया
'अन्दाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा' वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया की सद्यःप्रकाशित किताब है, जिसमें उन्होंने अपने...
लोग कहते हैं
लोग कहते हैं
मैं अपना ग़ुस्सा कम करूँ
समझदार औरतों की तरह सहूँ और चुप रहूँ।
ग़ुस्सा कैसे कम किया जाता है?
क्या यह चाट के ऊपर पड़ने...
क्या इसे जीना कहेंगे
क्या इसे जीना कहेंगे
कि कमरे से कई कैलेण्डर उतर गए
दीवार पर घड़ी
टिक-टिक करती दम तोड़ गई।
जाने कितनी बार
चूल्हा जला,
कितनी रोटियाँ बेली गईं चकले पर
कितने...
अपत्नी
"वह हमेशा पैर चौड़े करके बैठती थी, हालांकि उसके एक भी बच्चा नहीं हुआ था। उसके चेहरे की बेफिक्री मुझे नापसंद थी। उसे बेफिक्र होने का कोई हक नहीं था। अभी तो पहली पत्नी से प्रबोध को तलाक भी नहीं मिला था। और फिर प्रबोध को दूसरी शादी की कोई जल्दी भी नहीं थी। मेरी समझ में लड़की को चिन्तित होने के लिये यह पर्याप्त कारण था।"
एक 'योग्य पत्नी' के गुण भारतीय समाज में एक लड़की को बचपन से ही सिखाने शुरू कर दिए जाते हैं.. और वो भी इतना ठूसकर कि एक स्त्री इन गुणों के अभाव में दूसरी स्त्रियों के बारे में ही गलत राय बनाने लगती है.. पढ़िए 'पत्नी' और तथाकथित 'अपत्नी' के अंतर और उसके पीछे की सोच को दिखाती ममता कालिया की यह कहानी!