Tag: Man Bahadur Singh

Woman in front of a door

प्रेम

वह औरत आयी और धीरे से दरवाज़े का पर्दा उठा भीतर खिल गई कमरों के पार आख़िरी कमरे की रोशन फाँक से तब से मुझे घूर रही है पर दीवार की...
Manbahadur Singh

कविता के बहाने

नहीं मिली मुझे कविता किसी मित्र की तरह अनायास मैं ही गया कविता के पास अपने को तलाशता—अपने ख़िलाफ़ कविता जैसा अपने को पाने! आँधी के पहले ललौंछ आकाश हुमशता...
Man Bahadur Singh

आदमी का दुःख

राजा की सनक ग्रहों की कुदृष्टि मौसमों के उत्पात बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, शत्रु, भय प्रिय-बिछोह कम नहीं हैं ये दुःख आदमी पर! ऊपर से जब घर जलते हैं तो आदमी के दिन...
Manbahadur Singh

लड़की जो आग ढोती है

हाँ... मेरी चारपाई अब खिड़की के पास कर दो जिससे दिखे वह डगर जिस पर वह लड़की सिर पर सूखी लकड़ियों का गट्ठर लिए खड़ी हरे पेड़...
Manbahadur Singh

चापलूस

देख रहा हूँ तुम्हें कब से अपनी पीठ से झाड़ते हुए चाँदी की उस छड़ी की मार जो उस आदमी के हाथ में है जिसके गले में सोने...
Manbahadur Singh

बैल-व्यथा

तुम मुझे हरी चुमकार से घेरकर अपनी व्यवस्था की नाँद में जिस भाषा के भूसे की सानी डाल गए हो— एक खूँटे से बँधा हुआ अपनी नाथ को चाटता...
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