Tag: Manoj Meek
पिता का उत्कृष्ट
जमाकर देखता हूँ जब
जीवन सफर क्रम से..
पितरों के प्रतापों से पनपते
वंश की गहरी जड़ों से..
बन चुके वटवृक्ष के
शिखर सम से...
उम्र महकती है
अभी भी बालपन...
मुबारक हो
लाड प्यार के
बालपन में पलकर
सदी जवाँ हो चली है
भटकाव का
किशोर वय समाप्त हुआ
सपनों के सुनहरे साल
अब सच होंगे
फ़रेब से गुरेज़ सीखकर
अब न भटकेगी तरुणाई
अब न...
भोपाल गान
पीढ़ियाँ हैं
पहले और बाद के पुरा चित्र भी,
भीम हैं
और उनके आकार की बैठकायें भी
स्तूप हैं
बुद्ध और उनका बोध भी,
किलेदार हैं महल
और मन्नतों की मज़ार...
कायाकाल का वंदन
हे कायाकाल के नये साल अभिनंदन
हे दयानिधान किस विधि करूँ मैं वंदन
हे भगवन किस विधि करूँ प्रणाम
नित नव बल देकर देते नव संग्राम
हे मात-पिता किस...
रतिरंगी होली
माँग सिन्दूरी
नैना कजरारे
होंठों पर लाली
गाल गुलाली,
हाँथों में मेंहदी
पाँव महावर
रंगों संग अंगों की
रतिरंगी होली.
〽️
© मनोज मीक
प्रतिकर्षण
मन की
उथली अशांत परत के
नीचे छुप जाते हैं
दुख के अनावेशित
दृष्यमान अचुम्बकीय ध्रुव
स्वरों में
कुलबुलाते हैं
भंगिमाओं में
उतराते हैं
तार तार हो जाते हैं
सुखों के
अयस्क का अदृश्य
उत्तरी चुम्बक
खींच...
रतिरागिनी
जिस्मों के उतार-चढ़ाव
का सफ़र आसमान पर
चाँद के साथ
जवाँ होता रहा,
वो मुकरती रही
माथे पर अधरों के
शीतल अंगारे, गालों पर
सरकने से बेख़बर...
आ तारीख़
आ तारीख़ गले लगा लूँ
धड़कन की तड़पन समझा दूँ
प्यार का पारा बारह पर है
दो डिग्री और पार करा दूँ
प्रेम विनय व प्रणय प्रतिज्ञा
वचन कथन...
मुहब्बत का हफ़्ता
'Muhabbat Ka Hafta', a poem by Manoj Meek
प्रेम ऋतुओं के देश में
मुहब्बत का हफ़्ता?!
हैरान हैं अप्सराएँ
राधा, मीरा
श्याम और सुदामा
परम के चरम तक
काष्ठा से कल्प...
गणवान
गुणवान बहुत
गणतंत्र हमारा
जनमंत्रों से
अभिमंत्रित है.
विश्वगुरु हम
थे सदियों
फिर गुरू विश्व के
हों सदियों.
***
© मनोज मीक
उन्नीस
बीत गया वो सिखा गया,
सपने सदमें दिखा गया.
युग बीते सदियाँ बीतीं,
बेवक्त वक्त में समा गया.
लम्हों नें तारीख़ें लिख्खीं,
वो दर्ज हुआ ये मिटा गया.
पके हुये...
सदी जवाँ हो चली
लाड प्यार के
बालपन में पलकर
सदी जवाँ हो चली है
भटकाव का
किशोर वय समाप्त हुआ
सपनों के सुनहरे साल
अब सच होंगे
फ़रेब से गुरेज़ सीखकर
अब न भटकेगी तरुणाई
अब न...