Tag: Manoj Meek
प्रजानन
प्रजातंत्र का प्रजनन काल है
वयस्क प्रजा का प्रेम
मतों के गर्भ में आकार ले रहा है।
सत्ता के पैर भारी हैं
किसी पक्ष को मितली आ रही...
अर्थ-विवशता
"अर्थव्यवस्था की अवस्था के अर्थों की अर्थी सज रही है।"
"आने-पाई, चवन्नी-अठन्नी वाला ₹पया हज़ारी होकर भी डालर के कालर तक नहीं पहुँच पाया।"
आनंद के विलोम
आनंद की कोख से
जन्मा सुख दुःखी है
हमने गढ़ लिये हैं
भावनाओं के विलोम
सूरज दिन भर
उजाला रखता है
पर हमने ढूँढ ली है
चुभती पीली धूप
नुकीले पंजे
विदेह नीलांबर से
नोच लाते हैं
नीली...
अंधेरों की अंधेरगर्दी
तारे क़तार में भागे
चाँद देर सुबह तक
चाँदनी की पगडंडी पर
हाँकता रहा उन्हें
धरती के दूसरे छोर तक..
सूरज की बारी है
उजली किरणों के झुंड ने
झाँक लिया...
ज्यामिति
अनंत के, अथाह के मध्य
शरीर के ज्ञात
आयतन की
संख्य ठोस सतहें हैं
परन्तु शुल्बसूत्रीय
मस्तिष्क के
अज्ञात घनफल की
थाह अगणित है
सांसारिक ज्यामिति
विषमतल है
और गणितीय हासिल
बहुभुज अशेष
अत: घनत्ववान होकर...
शब्द बीज
अबकी आषाढ़
पचीसों पसेरी
अक्षर बोये थे
सावन के पानी में
उन्नत शब्दों के
अंकुर फूटे हैं
अपनी प्रेम धरा पर
उत्तम काव्य पौध
रोपने के जतन करो
व्यवधानों के
खर-पतवार उगेगें
वक़्त के कीट-पतंगे...
हक़ीक़त
सूचित हो, सभी सूचकाँक उपर हैं,
हक़ीक़त औंधे मुँह गिरी जा रही है
बाज़ीगरी की ग़ज़ब बारीकियाँ हैं,
आँकड़ों की आँखें मूँदी जा रही हैं
फ़सलों पर क़ीमतों...