'Kumari', a poem by Amrita Pritam
मैंने जब तेरी सेज पर पैर रखा था
मैं एक नहीं थी- दो थी
एक समूची ब्याही और एक समूची कुमारी
तेरे...
दो जिस्म रहते हैं इस घर में
जो दिन के
उजालो में दूर
रात के अंधेरो में लफ़्ज़ खोलते हैं
एक वो है जो
सुबह की उस पहली चाय से
रात के...