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Meeraji

मन मूरख मिट्टी का माधो, हर साँचे में ढल जाता है

मन मूरख मिट्टी का माधो, हर साँचे में ढल जाता है इसको तुम क्या धोखा दोगे, बात की बात बहल जाता है जी की जी में रह जाती...
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यानी

मैं सोचता हूँ इक नज़्म लिखूँ लेकिन इस में क्या बात कहूँ इक बात में भी सौ बातें हैं कहीं जीतें हैं, कहीं मातें हैं दिल कहता है...
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जिस्म के उस पार

अंधेरे कमरे में बैठा हूँ कि भूली-भटकी कोई किरन आ के देख पाए मगर सदा से अंधेरे कमरे की रस्म है कोई भी किरन आ के...
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अदम का ख़ला

हवा के झोंके इधर जो आएँ तो उन से कहना यहाँ कोई ऐसी शय नहीं जिसे वो ले जाएँ साथ अपने यहाँ कोई ऐसी शय नहीं...
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शराब

फ़ुज़ूल है ये गुफ़्तुगू है निगाह देखती है ताक़ में रखी हैं चंद बोतलें चलो चलें चलो चलें जहाँ हमें ख़याल ही न आए ज़िंदगी नज़र की भूल...
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क्लर्क का नग़्मा-ए-मोहब्बत

सब रात मिरी सपनों में गुज़र जाती है और मैं सोता हूँ फिर सुब्ह की देवी आती है अपने बिस्तर से उठता हूँ, मुँह धोता हूँ लाया...
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दूर किनारा

फैली धरती के सीने पे जंगल भी हैं लहलहाते हुए और दरिया भी हैं दूर जाते हुए और पर्वत भी हैं अपनी चुप में मगन और सागर भी...
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मुझे घर याद आता है

सिमटकर किस लिए नुक़्ता नहीं बनती ज़मीं कह दो ये फैला आसमाँ उस वक़्त क्यूँ दिल को लुभाता था हर इक सम्त अब अनोखे लोग हैं...
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चल-चलाओ

बस देखा और फिर भूल गए जब हुस्न निगाहों में आया मन-सागर में तूफ़ान उठा तूफ़ान को चंचल देख डरी आकाश की गँगा दूध-भरी और चाँद छुपा तारे...
Meeraji

उलझन की कहानी

एक अकहरा, दूसरा दोहरा, तीसरा है सो तिहरा है एक अकहरे पर पल-पल को ध्यान का ख़ूनीं पहरा है दूसरे दोहरे के रस्ते में तीसरा खेल...
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एक थी औरत

ये जी चाहता है कि तुम एक नन्ही सी लड़की हो और हम तुम्हें गोद में ले के अपनी बिठा लें यूँ ही चीख़ो चिल्लाओ,...
Girl, Dupatta, Sun

रस की अनोखी लहरें

"मैं ये चाहती हूँ कि दुनिया की आँखें मुझे देखती जाएँ यूँ देखती जाएँ जैसे कोई पेड़ की नर्म टहनी को देखे लचकती हुई नर्म टहनी को देखे.."
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