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‘खोई चीज़ों का शोक’ से कविताएँ
सविता सिंह का नया कविता संग्रह 'खोई चीज़ों का शोक' सघन भावनात्मक आवेश से युक्त कविताओं की एक शृंखला है जो अत्यन्त निजी होते...
आख़िरी बार मिलो
आख़िरी बार मिलो ऐसे कि जलते हुए दिल
राख हो जाएँ कोई और तक़ाज़ा न करें
चाक-ए-वादा न सिले, ज़ख़्म-ए-तमन्ना न खिले
साँस हमवार रहे, शमा की लौ...
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
सत्य हो यदि, कल्प...
ये मुलाक़ातें
बीच-बीच की
ये मुलाक़ातें
मेरी उम्र के पन्नों पर ऐसे ही सजी हैं—
जैसे बच्चे अपनी पोथी में
चमकीली पन्नी,
साँप की केंचुल
और फूल की पँखुरियाँ रखते हैं।
प्यार?
सच क्या...
यह पृथ्वी रहेगी
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में,
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक,
जैसे दाने में रह लेता...
ख़ाली मुलाक़ात
'Khali Mulaqat', a poem by Rag Ranjan
हम एक अनजान रास्ते पर ख़ूब चले
हम चलते-चलते सहसा रुके
और एक-दूसरे से पूछा-
हम भाग रहे हैं कहीं से
या...
ऐ दोस्त
एक शाम हुआ करती थी
जो ढल गई
तेरे जाने के बाद ऐ दोस्त!
चाय की चुस्कियों में अब
मज़ा नहीं रहा।
बादल गरजते रहे, बरसते भी रहे
चौकोर टेबल,
और वो...