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Mehrunnisa Parvez

पासंग

"औरत क्यों हमेशा अपने को निछावर करने के लिए और गठाने के लिए आतुर रहती है? बूढ़ी औरत जो खुद ठगी जाती है फिर वह क्यों नई थिरकती बच्ची को थिरकने से रोक नहीं पाती है? खुद सुधबुध क्यों खो देती है? माँ बनने के सुख के अलावा पुरुष से कभी कुछ नहीं मिला? युगों से खुद लुटती रही और अपनी नई पीढ़ी को लुटने के लिये प्रेरित करती है, ऐसा क्यों? अल्लाह ने औरत को इतना नासमझ-भाग्यहीन क्यों बनाया? इसीलिए तो पुरुष कहता है कि औरत में अकल नहीं होती। अकल होती तो बलि का बकरा बनने को हमेशा आतुर क्यों रहती?"
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