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हम सब लौट रहे हैं
हम सब लौट रहे हैं
ख़ाली हाथ
भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग़ में
गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय
अपने कमरे को भी...
आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ
आइसोलेशन के अन्तिम पृष्ठ
(श्रमिक)
अप्रैल के नंगे-नीले दरख़्तों और टहनियों से प्रक्षालित
ओ विस्तृत आकाश!
अपने प्रकाश के चाकुओं से
मुझ पर नक़्क़ाशी करो...
सम्बोधन हे! अरे!
1
हम अपनी कल्पनाओं में छोटी-छोटी...
आजकल, वे लौट रहे हैं मानो लौट रही हों हताश चींटियाँ
आजकल
1
रेंग रहा है यह वक़्त
मेरे जिस्म पर कीड़े की तरह
अपनी हथेलियों से लगातार
मैं इसे झटकने की कोशिश कर रहा हूँ...
2
वृक्ष की शाख़ से टूटकर...
पैदल चलते लोग
तमाम दृश्यों को हटाता, घसीटता और ठोकर मारता हुआ
चारों तरफ़ एक ही दृश्य है
बस एक ही आवाज़
जो पैरों के उठने और गिरने की हुआ करती...
बस यही है पाप
पटरियों पर रोटियाँ हैं
रोटियों पर ख़ून है,
तप रही हैं हड्डियाँ,
अगला महीना जून है।
सभ्यता के जिस शिखर से
चू रहा है रक्त,
आँखें आज हैं आरक्त,
अगणित,
स्वप्न के संघर्ष...
बीस-बीस की बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा की रात
चीथड़े और लोथड़ों के बीच
पूरे चाँद-सी गोल रोटियों की फुलकारियाँ
उन मज़दूरों के हाथों का हुनर पेश कर रही थीं
जो अब रेलवे...
परमानन्द रमन की कविताएँ
आपदा प्रबन्धन
कहीं किसी कोने में
जीवन यात्रा के भी
हो एक आपातकालीन खिड़की
आपदाओं के शिकार
कुछ टूटे/हारे रिश्ते
पहुँच नहीं पाते
अपने अन्तिम पड़ाव तक।
आवेदन
नहीं था कोई कॉलम
किसी भी...
राहुल बोयल की कविताएँ
1
एक देवी की प्रतिमा है - निर्वसन
पहन लिया है मास्क मुख पर
जबकि बग़ल में पड़ा है बुरखा
देवताओं ने अवसान की घड़ी में भी
जारी रखी...
घटना नहीं है घर लौटना
रोहित ठाकुर : तीन कविताएँ
घर लौटते हुए किसी अनहोनी का शिकार न हो जाऊँ
दिल्ली - बम्बई - पूना - कलकत्ता
न जाने कहाँ-कहाँ से
पैदल चलते...