Tag: Migration

Nitesh Vyas

त्रस्त एकान्त

स्थानान्तरण से त्रस्त एकान्त खोजता है निश्चित ठौर भीतर का कुछ निकल भागना चाहता नियत भार उठाने वाले कंधों और निश्चित दूरी नापने वाले लम्बे क़दमों को छोड़ दिन के हर...
John Guzlowski

जॉन गुज़लॉवस्की की कविता ‘मेरे लोग’

जॉन गुज़लॉवस्की (John Guzlowski) नाज़ी यातना कैम्प में मिले माता-पिता की संतान हैं। उनका जन्म जर्मनी के एक विस्थापित कैम्प में हुआ। उनके माता-पिता...
Sushant Supriye

सड़क की छाती पर कोलतार

सड़क की छाती पर कोलतार बिछा हुआ है। उस पर मज़दूरों के जत्थे की पदचाप है। इस दृश्य के उस पार उनके दुख-दर्द हैं।...
Rohit Thakur

एक मौसम को लिखते समय

मैं सही शब्दों की तलाश करूँगा लिखूँगा एक मौसम, एक सत्य कहने में दुःख का वृक्ष भी सूख जाता है घर जाने वाली सभी रेल विलम्ब से चल रही...
Indian Old Woman

कुछ जोड़ी चप्पलें, इमाम दस्ता

कुछ जोड़ी चप्पलें उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मनुष्य होने के दावे कितने झूठे पड़ चुके थे तुम्हारी आत्म संलिप्त दानशीलता के बावजूद, थोड़ा-सा भूगोल लिए आँखों में वे बस...
Sandeep Nirbhay

गाँव को विदा कह देना आसान नहीं है

मेरे गाँव! जा रहा हूँ दूर-दिसावर छाले से उपने थोथे धान की तरह तेरी गोद में सिर रख नहीं रोऊँगा जैसे नहीं रोए थे दादा दादी के गहने गिरवी...
Lockdown Migration

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

1 वे हमारे सामने थे और पीछे भी दाएँ थे और बाएँ भी वे हमारे हर तरफ़ थे बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग जो अपने...
Sharad Billore

मैं गाँव गया था

मैं अभी गाँव गया था केवल यह देखने कि घर वाले बदल गए हैं या अभी तक यह सोचते हैं कि मैं बड़ा आदमी बनकर लौटूँगा। रास्ते में सागौन पीले...
Shankaranand

पैदल चलते लोग

तमाम दृश्यों को हटाता, घसीटता और ठोकर मारता हुआ चारों तरफ़ एक ही दृश्य है बस एक ही आवाज़ जो पैरों के उठने और गिरने की हुआ करती...
Gaurav Bharti

लौटना, थपकियाँ, देखना

लौटना खण्डित आस्थाएँ लिए महामारी के इस दुर्दिन में हज़ारों बेबस, लाचार मज़दूर सभी दिशाओं से लौट रहे हैं अपने-अपने घर उसने नहीं सोचा था लौटना होगा कुछ यूँ कि वह लौटने जैसा नहीं...
Lockdown Migration, Labours

प्रवासी मज़दूर

मैंने कब माँगा था तुमसे आकाश का बादल धरती का कोना सागर की लहर हवा का झोंका सिंहासन की धूल पुरखों की राख या अपने बच्चे के लिए दूध यह सब वर्जित...
Lockdown Migration, Labour

राहुल बोयल की कविताएँ

1 एक देवी की प्रतिमा है - निर्वसन पहन लिया है मास्क मुख पर जबकि बग़ल में पड़ा है बुरखा देवताओं ने अवसान की घड़ी में भी जारी रखी...
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