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गरमी में प्रातःकाल
मिलन यामिनी से
गरमी में प्रातःकाल पवन
बेला से खेला करता जब
तब याद तुम्हारी आती है।
जब मन से लाखों बार गया-
आया सुख सपनों का मेला,
जब मैंने घोर...
इतना मालूम है
अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़
सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मगर उस कूचा-ए-रंग-ओ-बू में
रोज़ की तरह...
याद
आज सूरज ने कुछ घबराकर रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बन्द की और अँधेरे की सीढ़ियाँ उतर गया
आसमान की भवों पर...